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गरीब की बिटिया

मीत की कलम से
मीत की कलम से
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खेल कूद की उमर में कैसे, माँ का फ़र्ज निभाती देखो !
सात बरस की उमर में बिटिया, आधी माँ बन जाती देखो !
एक हाथ में झाड़ू है, और दूजे में छोटा भाई है !
फ़टे पुराने कपड़ों में, लेता बचपन अंगड़ाई है !!

गुड्डे गुड़िया खेल न पायी, बचपन सारा बीत गया !
छु छुअल और लंगड़ी चाल भी, ख्वाबों में ही रीत गया !
खोखो और बिल्लस की चाहत, आँखों में समायी है !
फ़टे पुराने कपड़ों में, लेता बचपन अंगड़ाई है !!

ले देकर माँ दो ही रोटी, बच्चों को दे पाती है !
खुद भूखी रह जाती बिटिया, भाई को खिलाती है !
गुमसुम सी नन्हीं आँखों में, मजबूरी सी छायी है !
फ़टे पुराने कपड़ों में, लेता बचपन अंगड़ाई है !!

पढना लिखना सीखे कैसे, स्कूल जाने का समय नहीं !
दोष है इतना वो लडकी है, दूजी कोई वजह नहीं !
जाने क्यूँ ऊपरवाले ने, किस्मत ऐसी बनायी है !
फ़टे पुराने कपड़ों में, लेता बचपन अंगड़ाई है !!

– अमित ‘मीत’

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