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महिमा छप्पन भोग की

मीत की कलम से
मीत की कलम से
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आओ सुनाऊँ कथा मैँ तुमको, भक्तोँ छप्पन भोग की….
गोवर्धन धारी की लीला, गोपेश्वर के योग की….
एक बार वो इंद्र देवता, हो गये थे नाराज….
गोकुल मेँ बरसाए पानी, बरसाने मेँ गाज….

त्राहि त्राहि कर जनता बोली, रक्षा करो हे कान्हा….
कहाँ जाएँ हम तुम्हीँ बताओ, दे दो कोई ठिकाना….
सुनकर मेरे कृष्ण कन्हैया, धीरे से मुस्काए….
छोटी सी एक अंगुली मेँ, गोवर्धन लिए उठाए….

ग्वाल बाल संग गोपियाँ आयीँ, आयीँ गईयाँ सारी….
जान बचायी सब लोगोँ की, कहलाए गिरधारी….
सात दिनोँ और आठ प्रहर तक, खड़े रहे एक पग मेँ….
लीलाधर की लीला न्यारी, जानते हैँ सब जग मेँ….

आठ प्रहर और सात दिनोँ तक, रह गये भूखे प्यासे….
ग्वाल बाल की भर गयीँ आँखेँ, प्रेमभाव करुणा से….
आठ प्रहर का खाने वाला, अब तक कुछ नहीँ खाया….
इसीलिए सारे ग्वाल बाल ने, छप्पन भोग बनाया….

दाल, भात, दही, चटनी के संग, कढ़ी किसी ने लायी….
कोई लाया हलवा, पूरी, कोई खोवे की मिठाई….
घेवर, चीला, माल पुआ संग, लौँगलता सजवाया….
छाछ, शहद और लस्सी कोई, घर से था मंगवाया….

पालक की कढ़ी लाया कोई, कोई सूजी का हलवा….
कोई लाया खस्ता कचौड़ी, कोई मीठी गुजिया….
खीर, जलेबी, बेसन बर्फी, कोई संग मेँ लाया….
मठरी, बड़ा, फेनी और रबड़ी, रसगुल्ला मंगवाया….

खजला, पापड़ लाया कोई, कोई मुरब्बा मीठा….
कोई लाया नमकीन, तीखा, कोई आँवला सीठा….
सिखरिणी, अवलेह, खूरमा, किसी के घर से आया….
मिलावे की सब्जी कोई, घर से अपने लाया….

कोई लाया साग करेला, कोई आम अचार….
कोई लाया खट्टे से फल, कोई मीठे अनार….
सूबत, मंड़का, पारिखा संग, शक्करपारा आया….
पान सुपारी इलायची संग, मोदक कोई मँगवाया….

घी, मिश्री संग लायी किसी ने माखन और मलाई….
किसी ने अपने घर से दलिया, और बाटी भिजवायी….
छप्पन भोग का करके नजारा, कन्हैया अकुलाये….
भक्तोँ का यह प्रेम देखकर, मन ही मन हर्षाए….

जय हो मेरे कृष्ण कन्हैया, जय जय हे गिरधारी….
छप्पन भोग की तीनोँ लोक मेँ, महिमा बड़ी है न्यारी….
जी चाहे मेरा भी अब तो, घर पे तुझे बुलाऊँ….
पास बिठाकर हाथोँ से, तुझे छप्पन भोग जिमाऊँ….

_अमित ‘मीत’

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