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माँसाहार एक पाशविक कृत्य

मीत की कलम से
मीत की कलम से
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चिकन बिरयानी खाने वालोँ, एक पल मेरी बात सुनो….
माँसाहार को बोलो टाटा, जीवोँ के जज्बात सुनो….
तुम्हारी तरह ही उन लोगोँ ने, ईश्वर से जीवन पाया है….
ईश्वर की इस रचना पर, ऐसे ना आघात करो….

जब घर मेँ बच्चे होते हैँ, तुम खुशियाँ बहुत मनाते हो….
नाच नाच कर सारा मोहल्ला, सर पे अपने उठाते हो….
जब भी आता है शुभ अवसर, काटते हो तुम जीवोँ को….
कभी मुर्गे की, कभी बकरे की, पार्टी रोज मनाते हो….

तुम्हारी तरह बाकी जीवोँ का, अपना परिवार भी होता है….
तुम लोगोँ की खुशी के कारण, वो दिल ही दिल मेँ रोता है….
जब माँ की गोदी भरने पर, दूजी माँ शोक मनाएगी….
तुम ही बताओ ऐसे मेँ क्या, घर मेँ शुभता आएगी….

खाने को क्या कम पड़ती हैँ, आटे मैदे की रोटियाँ….
नोचते हो क्यूँ मजे से तुम सब, मासूमोँ की बोटियाँ….
इंसान हो तुम, पहचानो खुद को, हैवानियत क्यूँ दिखलाते हो….
क्यूँ निर्दोष मासूमोँ का तुम, जिस्म नोँचकर खाते हो….

_अमित ‘मीत’

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