मीत की कलम से
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आज फिर से सब लोग, रावण जलाने जाएँगे….
खुद को राम समझेँगे, और पुतले को जलाएँगे….
दशहरा देखने की खातिर, कुछ कन्याएँ जब आएँगी….
रावण को मारने जाने वाले, खुद रावण बन जाएँगे….
गंदे भद्दे कमेँट करेँगे, गंदी नजरोँ से ताकेँगे….
आँख बचाकर लोगोँ की, कपड़ोँ के भीतर झाँकेँगे….
जाने कितनी बार धरा पर, राम का आज कतल होगा….
रावण को जलाने वाले, राम को जलाकर आएँगे….
_अमित ‘मीत’
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