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भगदड़ की खबरोँ से आज, दिल मेँ बहुत कष्ट है….
पुलिस का कोई पता नहीँ, प्रशासन मदमस्त है….
दशहरे की भगदड़ मेँ आज, जाने कितनी जान गयी….
सुशासन के ठेकेदार, चूहे खाने मेँ व्यस्त है….
माना कि भीड़ भरी जगहोँ पर, अक्सर भगदड़ मच जाती है….
लेकिन चुस्त प्रशासन हो तो, लाखोँ जानेँ बच जाती हैँ….
मुआवजे की कर के घोषणा, हो जाती सरकारेँ चुप….
जाँच के झूठे दिलासे से ही, खबरेँ सारी पच जाती हैँ….
तुम ही बताओ इस घटना पर, किस किस पर मैँ दोष मढ़ूं….
बढ़ती आबादी को कोसूं, या व्यवस्था की बात करुँ….
इतने बड़े आयोजन मेँ, कहीँ कुछ तो कमी रही होगी….
कौन है दोषी इस घटना का, किस पर मैँ आघात करूँ….
तार टूटने की वो अफवाह, जाने किसने फैलायी थी….
इतने बड़े शहर मेँ सारी, भीड़ वहीँ क्यूँ आयी थी….
जाने क्यूँ इस घटना से, एक साजिश की बू आती है….
कौन बना था जनरल डायर, किसने गोली चलवायी थी….
छठ पूजा के बाद भी क्यूँ, लापरवाही दोहरायी गयी….
सुरक्षा और देखरेख मेँ, कोताही बरतायी गयी….
माना कि रावण अधर्मी था, जल रहा था धूं धूं कर के….
फिर किसको खुश करने खातिर, इतनी बलि चढ़ाई गयी….
_अमित ‘मीत’
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