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ना किसी हिँदू से है नफरत, ना हिँदू रिवाजोँ से….
उसे नफरत है तो केवल, चंद कातिल इरादोँ से….
उसे गीता भी भाती है, उसे कुरान भी भाता है….
वो इंसान है सच्चा, उसे इंसान ही भाता है….
वो राखी भी मनाता है, वो दीवाली भी मनाता है….
होली के रंग मेँ रंगकर वो, सभी मेँ घुल मिल जाता है….
कभी नाचता है गणपति मेँ, कभी दुर्गा विसर्जन मेँ….
दशहरा देखने की इच्छा, सदा रहती है उस मन मेँ….
जो ठेकेदार हैँ धर्म के, वो उसको जीने नहीँ देते….
भंग होली दीवाली मेँ, कभी पीने नहीँ देते….
वो हिँदू है तू मुसलमाँ, हमेशा याद दिलाते हैँ….
इंसानी खून को मजहब मेँ, वो अक्सर बाँट जाते हैँ….
भले इंकार करे कोई, खुद को हिँदुस्तानी कहने से….
भरी संसद मेँ वंदे मातरम् को, जुबानी कहने से….
किसी के मानने ना मानने से, खून हरा नहीँ होगा….
कोई ऐसा दिल नहीँ होगा, जहाँ तिरंगा फहरा नहीँ होगा….
_अमित ‘मीत’
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