मीत की कलम से
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निकलता हूँ जब मैँ घर से, नौकरी की तलाश मेँ….
मेरे बचपन की यादोँ मेँ अक्सर, खो जाती है मेरी माँ….
लौट आता हूँ जब थक हारकर, दुनिया की भीड़ से….
नयी उम्मीद फिर से दिल मेँ, जगा जाती है मेरी माँ….
खाना खाकर के जब मैँ अपने, बिस्तर पे जाता हूँ….
चुपके से तन पे चादर, उढ़ा जाती है मेरी माँ….
टूट न जाए कहीँ नीँद मेरी, बर्तनोँ की आवाज से….
कुछ खाए बिना ही अक्सर, सो जाती है मेरी माँ….
_अमित ‘मीत’
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