- 51 Posts
- 23 Comments
माँ आज भी, नजरेँ टिकाए बैठी है….
अपने आँगन मेँ, पलकेँ बिछाए बैठी है….
आएगा मेरा लाल, फिर मिलने मुझसे….
बिना शर्त, यही उम्मीद लगाए बैठी है….
सताता था बहुत, छोटा था जब बचपन मेँ….
खेलते खेलते ही गिर जाता था, मेरे आँगन मेँ….
ना जाने मेरा वो लाल, अब कैसा होगा….
लोगोँ को देखकर छिप जाता था, मेरे आँचल मेँ….
ना मेरा आँचल है वहाँ, ना ही कोई छाया है….
बस हर तरफ दौड़-भाग है, और माया है….
जब भी होती है, मेरे दरवाजे पर दस्तक कोई….
ऐसा लगता है, मेरा लाल मिलने आया है….
पढ़ने जाता था तो, खुद ही सँवारा करती थी….
नून राई से तेरी, नजरेँ उतारा करती थी….
स्कूल से लौटकर, जब तू थक के बैठ जाता था….
अपने हाथोँ से, तेरे जूते उतारा करती थी….
माँ आज भी, तेरी आस लिए बैठी है….
अपनी आँखोँ मेँ, अजब सी प्यास लिए बैठी है….
तुझे देखने को तरस रही हैँ, ये बूढ़ी आँखेँ….
ठंडे पानी का, एक गिलास लिए बैठी है….
_अमित ‘मीत’
Read Comments