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वो अखबार खरीदता जरुर है, पर अखबार की सुर्खियोँ पर कभी मजे नहीँ लेता….
वो इस देश के हालात से भलीभाँति वाकिफ है, फिर भी किसी से कुछ नहीँ कहता….
वो जानता है किसी पन्ने पर उजड़ा घर होगा, किसी कोने मेँ गंदी नालियाँ होगी….
कहीँ मर्डर कहीँ बलात्कार की खबरेँ होंगी, हर अखबार मेँ इंसानियत के लिए गालियाँ होँगी….
पेज 3 पर कुछ बालाएँ (बलाएँ) पाश्चात्य संस्कृति का प्रदर्शन कर रही होँगी….
वहीँ दूसरी तरफ कुछ निर्दोष कन्याएँ इनकी करतूतोँ का मुआवजा भर रही होँगी….
फ्रंट पेज पर कुछ नेताओँ की उलजलूल बयानबाजी होगी….
वादोँ और घोषणाओँ की लंबी चौड़ी जालसाजी होगी….
कहीँ किसी पन्ने पर क्रिकेट की पूर्वनियोजित जीत हार के समाचार होँगे….
राष्ट्रीय खेल हॉकी के सितारे अपनी पहचान पाने के लिए लाचार होँगे….
कहीँ बाल झड़ने की, तो कहीँ यौन रोगोँ की दवाएँ होँगी….
कहीँ खामोश अक्षरोँ से निकलती, अश्रु की धाराएँ होँगी….
पर उसे इन सब चीजोँ से क्या लेना देना, उसे तो इन अखबारोँ से अपना पेट भरना है….
पुराने अखबार खरीदकर कबाड़ी वाले के हवाले करना है….
हाँ वो अखबार खरीदता है, ताकि कल फिर से नया अखबार बाजार मेँ आ सके….
और वो बेचारा अपने बच्चोँ को दो वक्त की रोटी खिला सके….
_अमित ‘मीत’
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